भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एकता / रचना उनियाल
Kavita Kosh से
आदिकाल से बह रही, ज्ञान मार्ग की धार।
धन्य-धन्य भू भारती, करती बेड़ा पार॥
भिन्न-भिन्न हैं रीतियाँ, भिन्न धर्म हैं चार।
प्राणी जन मन एक है, शुद्ध कर्म हर बार॥
मंदिर में घंटी बजे, मुल्ला देत अजान।
गिरिजाघर में पादरी, गुरुग्रंथ का ज्ञान॥
देश हमारा एक है, अलग-अलग परिधान।
प्रेम संग मन रह रहे, भारत भूमि महान॥
भारत माता हिय बसे, सभी धर्म त्यौहार।
नेह रंग मन चढ़ रहा, पुलकित है ग़र द्वार॥
गाते वन्दे मातरम, जन गण मन है गान।
लहराये झंडा गगन, करे एकता भान॥
भारत माता एकता, भारत का है धाम।
मिट जायें जयछंद ही, मिटे ज़फर का नाम॥
शुद्ध सदा मन कर्म हों, देश करे अभिमान।
सर्व धर्म सब एक है, भारतीय संज्ञान॥