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एकालाप / शुभा
Kavita Kosh से
क्या नष्ट किया जा रहा है
यह दृश्य है जो खत्म हो रहा है
या मेरी नज़र
ये मेरी आवाज़ खत्म हो रही है
या गूंज पैदा करने वाले दबाव
आत्मजगत मिट रहा है या वस्तुजगत
कौन देख सकता है भला इस
मक्खी की भनभनाहट
इसकी बेचैन उड़ान
कौन तड़प सकता है
संवाद के लिए और उसके
बनने तक कौन कर सकता है
एकालाप ।