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एक-एक नींद / संज्ञा सिंह
Kavita Kosh से
एक नींद पूरी हुई चिड़िया की
हिली डुली अपने स्थान पर
इधर- उधर मारी चोंच
फैलाया पखना
समेटा थोडा-थोडा अपना सिर
एक नींद पूरी हुई बच्चे की
कुनमुनाया अपनी तरह
उंनीदी आँखों से देखा इधर-उधर
शुरू करता हुआ
नींद की एक और यात्रा
एक नींद पूरी हुई स्त्री की
खड़ी होती हुई
इच्छाओं-अनिच्छओं के साथ
चलने के लिए
अनंत यातनाओं वाली यात्रा पर....
रचनाकाल : 1994, विदिशा