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एक आमा के दू गोही / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
एक आमा के दू गोही? कखरो के हे ले का होही?
जेन होही तेन होही, संसो झन कर तें जोही।
कोनो ल देखाबे एक अंगरी
त अपन डहर हे तीन अंगरी।
अनभल करइया के भल कहाँ
झन इचे कोनो कखरो टंगरी॥
हरू कभू गरू नई होय, पानी म नई बूड़े फोही।
एक आमा के दू गोही? कखरो के हे ले का होही?
पर बर जेन हर खांचा खनय
तेन ह सऊँहै एक दिन झपाय।
दूसर के हुरमत बेचइया ह
मान-गऊन कभू नई पाय॥
लुही ओसनेच ओहा संगी, जेन ह जइसन बोही।
एक आमा के दू गोही? कखरो केहे ले का होही?
बरछी-भाला के घाव भरे
फेर बोली के घाव हरियर।
दूध म जतके पानी डारबे-
दूध होही ओतके पनियर।
करे बानी म करेजा चानी, सोवत-जागत पदोही।
एक आमा के दू गोही? कखरो केहे ले का होही॥