मन भीड़ मे एक अन्तर्देशी खोज रहा है
एक चिट्ठी लिखना चाहता है
तुम्हारे नाम
और उसमे समेटना चाहता है
मेरी कल्पनाओं को
जो सिर्फ़ प्यार की हैं,
मन
इश्क को मंजिल बनाना चाहता है
अब यही काम और मुकाम है
नकाम ही सही
जीना चाहता है उसे
आखिरी साँस तक
हर तिलस्म को तोड़
सारे आड़े-तिरछे ख्वाबों को
उस पत्र में सजाना चाहता है
समेटना चाहता है
और उसी के सहारे
मुहब्बत का
एक बीज रोपना चाहता है
सबके दिलों में।