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एक दिन जब / श्रीविलास सिंह

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नदी के उस पार
किसी उनींदी शाम
जब मैं तुम्हारा इंतज़ार करते
थक चुका होऊंगा
और मेरी उमंगे फैली होंगी किनारे पर
उतरी हुई बाढ़ के कीचड़ की तरह,
मेरे सपनों में एक गुलाबी चिड़िया
फिर से बना लेगी
एक घोंसला
तुम्हारी प्रतीक्षा में।

हरियाली के दूर वाले मोड़ पर
जब मैं किसी उचाट दोपहर
तुम्हारे खयाल की तपिश से सराबोर
छाया तलाश रहा होऊंगा
और किरकिरी-सी भर जाएंगी स्मृतियाँ
आंखों में
किसी बवंडर से उड़ी धूल जैसे,
मेरी नींदों की शाख पर
एक चिड़िया लिख देगी
तुम्हारी हंसी के फूल।

किसी सुनसान सड़क पर
अंतहीन यात्रा के बीच
तुम्हारे मिलने की उत्कंठा में
जब पाँव थकने लगेंगे और
प्यास का मरुस्थल फैला होगा
अंतस के एक छोर से दूसरे सिरे तक
मेरे हृदय के आसमान पर
उगेगी एक बदली और बो देगी
मिलन की आशा का बीज
मेरी चेतना कि हथेली पर।

तब जब हम तुम
जा चुके होंगे बहुत दूर
सपनों की इस दुनियाँ से,
किसी उदास शाम के धुंधलके में
बच्चों का एक रेला
बाँसुरी की तान-सा बल खाता
गुजरेगा इसी रस्ते
और उनके पैरों के निशानों तले
मिट जाएंगे
हमारे पद चिन्ह
धूसर मिट्टी में मिल कर।