एक दुखियारे का प्रेम-गीत/वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
ओ प्रेमलते, मृदुभाव व्रते, तुम आयीं हर्षाया तन-मन
स्वागत हित और नहीं कुछ भी लो अर्पित हैं कुछ शब्द-सुमन
घूंघट से मुखड़ा निकला है या जीने का अभिप्राय खुला
दर्दीली एक कहानी का सुखमय नूतन अध्याय खुला
आभार प्रदर्शित करती है मेरे इस दिल की हर धड़कन
ओ प्रेमलते, मृदुभाव व्रते....................................
मेरे उत्साहित जीवन की जग ने रग रग निर्बल की थी
निर्दयी नियति ने अंतस की हरियाई भू मरूथल की थी
तुमने बरसायी प्रेम सुधा लहराया सपनों का उपवन
ओ प्रेमलते, मृदुभाव व्रते....................................
अँधियारों के बंदीगृह सी यह दुनिया रास न आती थी
रजनी तो क्या दिवसों पर भी काली छाया मड़राती थी
उजियारों का आभास मिला तुमने डाली शुभ दृष्टि-किरन
ओ प्रेमलते, मृदुभाव व्रते....................................