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एक दुश्मन की स्मृति को / बरीस स्लूत्स्की
Kavita Kosh से
मेरा एक दुश्मन मर गया है
लगातार मेरी तरफ़ तनी रहती है उसकी बन्दूक ।
पहले मेरे सौ दुश्मन थे
अब रह गए हैं निन्यानवे ।
मर गया है दुश्मन ! दूसरों से कम नहीं था दुष्ट वह ।
मेरी अपनी भी हालत अब कुछ ठीक नहीं ।
मुझे दिल से अफ़सोस है उसका
वैसे भी सौ अच्छी संख्या है निन्यानवे से ।
कितने साल हम एक साथ रहे !
अब वह अकेला चल दिया रात की ओर ।
वहाँ उसका मन मेरे बिना नहीं लगेगा ।
मेरे दिल का भी जैसे बन्द हो गया है द्वार ।