प्रभु जी !
आप देर से आये
अब आपको कौन पिलाये?
शराब खाना उजड़ चुका है
दीवारों पर ऊँघ रहे हैं
मेज़ों पर रखे ख़ाली गिलासों के साये
और प्रार्थना की मुद्रा में बैठस
एक शराबी
धीरे—धीरे उचर रहा है
कुछ गीत,कुछ कविताएँ .
आओ, प्रभु जी !
आज रात का अंतिम काम करें हम
एक शराबी कवि को उसके घर पहुँचायें
अँधेरे से उसे रौशनी तक ले जायें.