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एक पल से एक पल का / विजय वाते
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एक पल से एक पल का सिलसिला है ज़िन्दगी।
हादसा फिर हादसा, किर हादसा है ज़िन्दगी।
बन्द कमरे में छिपी है स्याह बिल्ली आस की,
इस अन्धेरे में उसी को है ढूंढना है ज़िन्दगी।
चिल-चिलाती धूप में वीरान रेगिस्तान में,
दौड़ते हिरनों का बेकल काफ़िला है ज़िन्दगी।
कल के बारे में ज्यादा सोचना अच्छा नहीं,
चाय के कप से लबों का फ़ासला है ज़िन्दगी।
इस जनम में ही नहीं, अब तक के जन्मों में 'विजय'
क्या किया है आपने, ये इत्तिला है ज़िन्दगी।