भावों की तू अजब पिटारी, अरमानों का तू सागर,
नाज़ुक से अहसासों की एक, नर्म-मुलायम सी चादर।
खट्टी-मीठी फटकारें और कभी पलटकर वही दुलार,
जीवन का हर पल तुझमें माँ, तुझसे है सारा संसार।
जिसकी खातिर सब कुछ वारा, अपनी खुशियाँ जानी ना,
वक़्त कहाँ उस पर अब माँ, तेरे दुःख-दर्द चुराने का।
उम्मीदों को पंख लगाने, बड़े शहर को निकला जब,
छुपी रुलाई देखी तेरी, प्यार का तब समझा मतलब।
मिट्टी की तू सोंधी खुशबू, सम्बन्धों की नर्म नमी,
नए शहर में हर मुकाम पर, बस तेरी ही खली कमी।
हैरत है हर चेहरे पर थे, कई मुखौटे और नकाब,
तुझसा भी क्या कोई होगा, चलती -फिरती खुली किताब।
रिश्तों की गर्माहट तुझसे, तुझसे प्यार भरा अहसास,
ले भरपूर दुआयें अपनी, हरदम थी तू मेरे पास।
किसने कहा फरिश्तों के जग में दीदार नहीं होते,
माँ की गोद में एक झपकी, सपने साकार सभी होते।