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एक फ़िलिस्तीनी घाव की डायरी / महमूद दरवेश

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फ़दवा तुक़ान<ref>फ़दवा तुक़ान (1917–2003) एक महत्वपूर्ण फ़िलिस्तीनी कवयित्री । अपनी विशिष्ट विद्रोही शैली के लिए
समूचे अरब जगत में विख्यात</ref> के लिए

हमें याद दिलाने की ज़रूरत नहीं
कि माउन्ट कारमेल<ref>माउन्ट कारमेल उत्तरी इज़राइल में स्थित बहाई सम्प्रदाय का एक पवित्र पर्वत</ref> हमारे भीतर है
और गैलिली<ref>गैलिली उत्तरी इज़राइल का एक बड़ा इलाक़ा जो देश के उत्तरी प्रशासकीय सूबे में पड़ता है</ref> की घास हमारी पलकों पर ।
ये मत कहना : अगर हम दौड़ पड़ते उस तक एक नदी की तरह ।
मत कहना:
हम और हमारा देश एक ही माँस और अस्थियाँ हैं ।
...
जून से पहले हम नौसिखिये फ़ाख़्ते न थे
सो हमारा प्रेम बन्धन के बावजूद बिखरा नहीं
बहना, इन बीस बरसों में
हमारा काम कविता लिखना नहीं
लड़ना था ।
०००
वह छाया जो उतरती है तुम्हारी आँखों में
-ईश्वर का एक दैत्य
जो जून के महीने में बाहर आया
हमारे सिरों को सूरज से लपेट देने को-
शहादत है उसका रंग
प्रार्थना का उसका स्वाद
किस ख़ूबी से हत्या करता है वह, किस ख़ूबी से करता है उद्धार ।
०००
रात जो शुरू हुई थी तुम्हारी आँखों से -
मेरी आत्मा के भीतर वह एक लम्बी रात का अन्त था:
अकाल के युग से ही
यहाँ और अब तक वापसी की राह में
रहे हैं साथ-साथ
०००
और हमने जाना किस से बनती है कोयल की आवाज़
आक्रान्ताओं के चेहरे पर लटकता एक चाकू
हमने जाना कब्रिस्तान की शान्ति किस से बनती है
एक त्यौहार से ... जीवन के बग़ीचे से
०००
तुमने अपनी कविताएँ गाईं, मैंने छज्जों को छोड़ते हुए देखा
अपनी दीवारों को
शहर का चौक आधे पहाड़ तक फैल गया था:
वह संगीत न था जो हमने सुना
वह शब्दों का रंग न था जो हमने देखा
कमरे के भीतर दस लाख नायक थे ।
०००
धरती सोख लेती है शहीदों की त्वचाओं को ।
यह धरती गेहूं और सितारों का वादा करती है ।
आराधना करो इसकी!
हम इसके नमक और पानी हैं ।
हम इसके घाव हैं, लेकिन लड़ते रहने वाला घाव ।
०००
मेरी बहना, आंसू हैं मेरे गले में
और मेरी आंखों में आग:
मैं आज़ाद हूं
मैं सुल्तान के प्रवेशद्वार पर अब नहीं करूंगा विरोध ।
वे जो सारे मर चुके, और वे जो मरेंगे दिवस के द्वार पर
उन सब ने ले लिया है मुझे आग़ोश में, और बदल दिया है मुझे एक हथियार में ।
०००
उफ़, यह मेरा अड़ियल घाव!
कोई सूटकेस नहीं है मेरा देश
मैं कोई यात्री नहीं हूं
मैं एक प्रेमी हूं और प्रेमिका के वतन से आया हूँ ।

०००
भूगर्भवेत्ता व्यस्त है पत्थरों का विश्लेषण करने में
गाथाओं के मलबे में वह खुद अपनी आंखें तलाश रहा है
यह दिखाने को
कि मैं सड़क पर फिरता एक दृष्टिहीन आवारा हूँ
जिसके पास सभ्यता का एक अक्षर तक नहीं ।
जबकि अपने ख़ुद के समय में मैं अपने पेड़ रोपता हूँ
मैं गाता हूँ अपना प्रेम

०००
समय आया है कि मैं मृतकों के बदले शब्द लूँ
समय आया है कि मैं अपनी धरती और कोयल के वास्ते अपने प्रेम को साबित करूँ
क्योंकि ऐसा यह समय है कि हथियार गिटार को लील जाता है
और आईने में मैं लगातार लगातार धुंधलाता जा रहा हूँ
जब से मेरी पीठ पर उगना शुरू किया है एक पेड़ ने ।


अनुवाद : अशोक पाण्डे

शब्दार्थ
<references/>