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एक भरी हुई नाव / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
ऊँची घासदार ढलानों से
देखता हूँ नीचे
दूर-दूर जंगल
और सोई हुई घाटी
जैसे एक भरी हुई नाव
धीरे-धीरे डूब रही हो।