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एक भाव, सही दाम / नईम
Kavita Kosh से
एक भाव, सही दाम,
इक्का हो या गुलाम!
सुई एक ही होगी-
टी.वी. हो या जुकाम!
मुस्कानें तीन इंच
नापो तो डेढ़ यार!
शत-प्रतिशत शुद्ध सभी,
गांधी या बुद्ध सभी!
तांत्रिक युग के योगी-
भीतर से क्रुद्ध सभी!
काली कमरी उनकी-
हुई आज तार-तार!
खरे एक तरफ पड़े,
खोटे बाज़ार चढ़े!
सरेआम सस्ते जो-
बिछिया सिंदूर कड़े!
घिसते घिस गए शब्द
बानगी बतौर प्यार!
सर से बाँधे सेहरे,
अंधे, लूले, बहरे।
नायक में खलनायक-
चेहरे ऊपर चेहरे!
खाल ये उधारी की-
ओढ़े हैं रँगे स्यार!