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एक मित्र के नाम / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
(सुरेश धींगड़ा के लिए)
मेरा एक मित्र
मेरी कविताओं में ढूंढना चाहता है
'कन्सिसटैंसी'
मैं उसकी इस बात पर
हंसना चाहता हूं ज़ोर से
लेकिन रहता हूं खामोश
क्योंकि
मेरी हंसी भी तो होगी 'इनकन्सिसटेंट'
1968