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एक मुश्किल / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
टाट के परदों के पीछे से
एक तरह बारह-तेरह साला चेहरा झाँका
वो चेहरा
बहार के फूल की तरह शफ़्फ़ाफ़
लेकिन उसके हाथ में
तरकारी काटते रहने की लकीरें थीं
और उन लकीरों में
बर्तन मांझने वाली राख जमी थी
उसके हाथ
उसके चेहरे से बीस साल बड़े थे