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एक मृतक का बयान / पूनम तुषामड़

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मैं तुम्हारे शहर का
एक सफाई कर्मचारी
तुम्हारे शहर की
गंदगी साफ करते
बीती है उम्र सारी
महज पैंतीस वर्ष की
आयु में ही हो गया
मेरे जीवन का अंत
मैंने नहीं देखा
अपने जीवन में कोई वसंत

मैं जानता हूं
मेरी मौत पर
नहीं रखी जाएगी
कोई शोक-सभा
ना ही धारण
किया जाएगा मौन
आखिर मरा है कौन?
एक अदना सफाई कर्मचारी

मेरी याद में
नहीं बनेगा कोई स्मारक
नहीं मिलेगा
कोई पैट्रोल-पम्प
मेरी विधवा को
नहीं झूकेगा कहीं
राष्ट्र-ध्वज
क्योंकि-
मेरी मौत से
तुम्हारे राष्ट्र ने
न कुछ अर्जित किया
न कुछ गंवाया है

गंवाया है -
बच्चों ने पिता
पत्नी ने पति
मां ने बेटा और
बहन ने भाई
जिनके लिए
करते-नरक सफाई
मैंने अपनी जिंदगी गंवाई

जानता हूं -
मेरे मरने के बाद
पत्नी ने
संभाली है जिम्मेवारी
दरोगा को जैसे-तैसे
खिलाएं हैं पैसे
अब वह बन गई है
एक सफाई कर्मचारी

मैं पूछता हूं -
क्या यही है
मेरे हिस्से का भारत?
जो है निरंतर
प्रगति-पथ पर अग्रसर!