एक मौन चीख़ / नादिया अंजुमन / अनिल जनविजय
बारिश ही उनके
हरे क़दमों की आवाज़ है
जो सड़क की तरफ़ से
आ रहे हैं भीतर अभी
रेगिस्तान से ला रहे हैं वे
गन्दे घाघरे और ऐसी प्यासी आत्माएँ
मृग-मरीचिका हैं जिनकी जलती हुई साँसें
जिनके चेहरे जले हुए हैं और सूखे हुए हैं लू से ।
वे सड़क की तरफ़ से
आ रहे हैं भीतर अभी ।
यातनाओं और सन्तापों के दर्द से
तड़प रही हैं उनके साथ लड़कियाँ,
ख़ुशी और हँसी कबकी
ग़ायब हो चुकी है उनके चेहरों से ।
उनके बूढ़े हो चुके दिलों में
दरारें पड़ चुकी हैं,
उनके रूखे होठों के
सूखे समुद्रों पर मुस्कान नहीं झलकती,
उनकी आँखों के नदियाँ सूख चुकी हैं
और उनसे झरती नहीं अब कोई
आँसुओं की बहार ।
हे मेरे ख़ुदा !
शायद मैं इससे अनजान हूँ
कि उनकी मौन चीख़ें नहीं पहुँचती बादलों तक
और उस मेहराबदार बहिश्त तक ?
बारिश ही उनके हरे क़दमों की आवाज़ है ।
जुलाई / अगस्त 2002
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय