एक लड़के के रूप में उसे
गुरूर था अपनी मूँछों का
जिसे वह मर्दानगी का सबूत समझता था
हाँ! मैंने देखा था उसे
अपनी प्रेमिका पर हाथ उठाते हुए
और मैं स्त्री-शोषण पर नज़्में लिखती,
ख़बरें पढ़ती खौल उठने वाली लड़की
उससे अपनी दोस्ती शिद्दत से निभा रही थी।
मैं जानती थी, हमेशा
'जितनी मैं स्त्रीवादी हूँ
उतना ही वह मर्द है!'