एक लम्बी ग़ज़ल / सूरज राय 'सूरज'
कोई फौरी मदद बुलानी है।
और फिर चीख भी दबानी है॥
कोई राजा न कोई रानी है।
ज़िंदगी भी अजब कहानी है॥
बात जो दिल ने न कही मुझसे
अनसुनी आपको सुनानी है॥
रुक गया आँख में जो, वह आँसू
बह गया जो नमक का पानी है॥
ख़ुदकशी बेईमां बना देगी
आख़िरी किश्त भी चुकानी है॥
दोस्तो ने सिखा दिया मुझको
बात किससे कहाँ छुपानी है॥
मेरी चुप्पी मेरा गुरूर नहीं
बस तज्रबों की सावधानी है॥
हार जाता हूँ बिन लड़े अब तो
एक बेटी मेरी सयानी है॥
जिस्म तो इक सराय है जां की
सिर्फ़ इक रात ही बितानी है॥
इक दफ़ा ही नज़र उठा लीजै
कोई अर्थी नहीं उठानी है॥
रुक भी जाओ ज़रूरतों इक पल
ख़्वाहिशों की चिता जलानी है॥
पीठ का घाव है कमाई मेरी
ये मेरे यार की निशानी है॥
होंठ अब हरक़तों में आ जाओ
आबरू आँख की बचानी है॥
कोख़ से क़ब्र रेल जीवन की
सबको ख़ुद की टिकिट कटानी है॥
अब्र तो वह ही है पता हो जिसे
बूंद कितनी कहाँ गिरानी है॥
आज किसकी पलक झपकती है
शर्त ये रात से लगानी है॥
एक हैं कृष्ण, अक़्ल के मालिक
एक मीरा है जो दीवानी है॥
क़र्ज़ है भुखमरी है और ज़हर
अब तो खेती है न किसानी है॥
माँ है उनकी, ये कहे वह औरत
साब कहते हैं नौकरानी है॥
है हर इक शय नई मकां में नये
याद इक घर की ही पुरानी है॥
एक चादर है सख़्त मिट्टी की
क़ब्र में ओढ़नी-बिछानी है॥
काग़ज़े-दिल मुआफ़ कर मुझको
इक इबारत तेरी मिटानी है॥
मैं तुम्हारा नहीं ये कह तो दिया
और क्या खामियाँ गिनानी है॥
याद की सैंकड़ों गठरियों से
एक मासूमियत चुरानी है॥
पेट भर जायेगा हवस का तेरी
जंग में पीठ भर दिखानी है॥
हाथ फैले हुए हैं हर शय के
सब भिखारी हैं कौन दानी है॥
वो मेरा दोस्त है पता है उसे
कौन-सी रग़ कहाँ दुखानी है॥
काश! किरदार भी यही होता
आपकी बात आसमानी है॥
ऐ समन्दर मेरी भी ज़िद सुनले
नाव अब रेत में डुबानी है॥
बेअदब हैं ये तेरे "सूरज" और
रोशनी मेरी ख़ानदानी है॥