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एक ‘उपास्य’ देव ही करते / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग खमाच-ताल त्रिताल)
एक ‘उपास्य’ देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि-अनुसार॥
सर्वोपरि-कर्तव्य-धर्म है यही एक, जीवनका सार।
करें स्वकर्मोंसे उपासना उनकी ही, रख शुद्ध विचार॥