Last modified on 8 जून 2014, at 21:29

एक ‘उपास्य’ देव ही करते / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग खमाच-ताल त्रिताल)
 
एक ‘उपास्य’ देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि-‌अनुसार॥
सर्वोपरि-कर्तव्य-धर्म है यही एक, जीवनका सार।
करें स्वकर्मोंसे उपासना उनकी ही, रख शुद्ध विचार॥