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ए वूमन्स प्राईड / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
उसकी हथेली पर मेरे आँसू
कितने अच्छे लगते हैं
जैसे सुब्ह-सवेरे
कँवल की पंखुड़ियाँ
शबनम से जगमग करती हों
मोती जैसी शबनम
फूल की आँखों में जाकर हीरे की कनी बन जाती है
क़तरा-क़तरा दिल करता है
ख़ुशबू धीरे-धीरे तन में फैलाती है
शबनम फूल के रंग में आख़िर रंग जाती है
नन्हे-नन्हे चिराग़ों की लौ बढ़ती है तो
उसका चेहरा पहले से बढ़कर रोशन लगने लगता है
उसकी आँखों में मेरे आँसू
कितने अच्छे लगते हैं !