Last modified on 22 अगस्त 2009, at 03:41

ऐय्यार / सरोज परमार

तुम्हारी आँख की कोर में
जो सिमटे हुए आँसू हैं।
उन्हें बह जाने दो ।
तुम्हारा अहं विगलित हो जाएगा
झूठ की धूल धुल जाएगी
दमकता सच उग आएगा
तुम्हारे चेहरे पर ।
हर उस आँख में आँसू होते हैं
जिनमें कभी सपने अँकुराते हैं।
मैंने ज़िन्दगी को जिस आँख से
देखा है
उसमें दर्द के अलावा
बेपनाह मुहब्बत के फूल भी हैं ।
कैसा ऐय्य्आर है प्यार
जो एक आँख में दर्द बन कर टीसता है
दूसरी को मुहब्बत की फुलझड़ियों से
चुँधियाता है!