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ऐसे फ़रमान आने लगे / डी .एम. मिश्र

ऐसे फ़रमान आने लगे
मेरी नीदें उड़ाने लगे

गो अंधेरों के ख़द्योत हों
रात को दिन बताने लगे

आग दिल में लगाकर मेरे
अपने जलवे दिखाने लगे

हम तो समझे थे बरसेंगे मेघ
ये तो बजली गिराने लगे

ऐब अपने नहीं देखते
मेरी कमियां गिनाने लगे

हम ज़रा सा नरम क्या पड़े
हमको आंखें दिखाने लगे

अच्छे दिन आज के देखकर
गुज़रे दिन याद आने लगे