भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐ गोरी मोर / रमेशकुमार सिंह चौहान
Kavita Kosh से
(यह रचना कामरूप छंद में है)
ऐ गोरी मोर, पैरी तोर, रून छुन बाजे ना।
सुन मयारू बोल, ढेना खोल, मनुवा नाचे ना।
कजरारी नैन, गुरतुर बैन, जादू चलाय ना।
चंदा बरन रूप, देखत हव चुप, दिल मा बसाय ना।
गोरी तोर प्यार, मोर अधार, जिनगी ल जिये बर।
ये जिनगी तोर, गोरी मोर, मया मा मरे बर।
कइसन सताबे, कभू आबे, जिनगी गढ़े बर।
करव इंतजार, सुन गोहार, तोही ल वरे बर।