ओस के संवेद्य मौनाकाश में ही
या सुगन्धों की सुखावह साँस में ही,
हो न हो यह ज़िन्दगी मेरी
- कहीं अटकी हुई है ।
छोड़ता हूँ--छोड़ती मुझ को नहीं
- तलवार मेरी ।
बह रही है धार मेरी
- उठ रही ललकार मेरी ।
ओस के संवेद्य मौनाकाश में ही
या सुगन्धों की सुखावह साँस में ही,
हो न हो यह ज़िन्दगी मेरी
छोड़ता हूँ--छोड़ती मुझ को नहीं
बह रही है धार मेरी