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ओ गांव है / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
बेटी टूरै
बाबल री पोळ सूं
उण रै हिवड़ै
ओळूं रै मथीजतै सबदां नै
सुर देवै
देळयां ऊभी
बास-बगड़ री लुगाईंयां
अर आंख्यां पूंछै
गळी बगता लोग
बो देख आटै सूं ल्याड़योड़ै हाथां
बाबल रै बांथ घाल
कुण सुबकै ?
अर बो देख
होकौ भरतौ
बेवणी री आग
आंसुवां सूं ठंडी कुण करै ?
ओ गांव है बावळा !
एक काळजै धड़कतौ गांव।