औरत / जमील मज़हरी
है तेरे जल्वा-ए-रंगी<ref>सौन्दर्य आभा से</ref> से उजाली दुनिया
तुझसे आबाद है शाइर की ख़याली दुनिया
नग़्म:-ए-रूहे अमल<ref>सदाचारी प्राणों का संगीत</ref>, बू-ए-गुलिस्तान-ए-हयात<ref>जीवन-वाटिका की सुगंध</ref>
गर्मि-ए-बज़्मे जहाँ<ref>संसर के उत्सव की शोभा</ref> शमः-ए-शबिस्तान-ए-हयात<ref>जीवन-प्रासाद का दीपक, शमा</ref>
तू है मासूम, तिरी सारी अदाएँ मासूम
इन्तहा ये है कि होती है ख़ताएँ मासूम
हुस्न किरदार निहाँ<ref>गुप्त सदाचार ही तेरा रूप है</ref> हुस्न तबीयत में<ref>सौन्दर्य-सुरुचि तेरे स्वभाव में है</ref> तेरे
मय-ए-सर जोश-ओ-वफ़ा शीशः-ए-इस्मत<ref>नेकी और भलाई की उमंग रूपी मदिरा ही तेरे शील रूपी पात्र में है</ref> में तेरे
अपने हाथों से ख़ुदा ने है बनाया तुझको
हम कहेंगे दिल-ए-फ़ितरत की तमन्ना तुझको
माहे-कामिल<ref>पूर्णिमा के चन्द्र से</ref> से तड़प, बर्क़ से<ref>बिजली से</ref> ग़ैरत माँगी
सीनः-ए-मिहर से<ref>सूर्य के सीने से</ref> थोड़ी-सी हरारत माँगी
रूह<ref>आत्मा</ref> फूलों की बनी, जिससे वह ख़ुशबू लेकर
दिल-ए-शाइर के अमानत थे जो आँसू लेकर
गूँधा क़ुदरत ने तिरी शोख़ तबीयत का ख़मीर
और तिरी ख़ाक के ज़र्रों से मुहब्बत का ख़मीर
दहर में<ref>संसार में</ref> मक़सदे-तख़लीक की<ref>सृष्टि के उद्देश्य के लिए</ref> हामिले<ref>साधन</ref> है तू
जिसके आगोश में<ref>गोद में</ref> कुलज़म<ref>दरिया, नदी</ref> है, वह साहिल<ref>किनारा</ref> है तू
चढ़ के परवान तेरी गोद से इन्साँ निकला
तूने जिस फूल को सींचा वह गुलिस्ताँ निकला
मानि-ए-लफ़्ज़-ए-सकूँ राज-ए-मुहब्बत है तू
है ये मुज्मल<ref>संक्षिप्त, सार रूप में</ref> तेरी तारीफ़ कि औरत है तू