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और खिल उठेंगे / सांवर दइया
Kavita Kosh से
कितना अच्छा है
कोई परवाह नहीं कीचड़ में सन जाने की
पानी से हुआ कीचड़
पानी से घुल जाएगा
जानते है
पानी में पानी के संग फिसलते बच्चे
पानी में खिल उठते हैं बच्चे
धुलकर खिल गया है जैसे नीला-नीला आकाश
धुलकर खिल उठा है जैसे पेड़ के हरे-हरे पात
धुलकर और खिल उठेंगे
बच्चों के धुले-धुलाए मन !