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औल / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

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कल मेरी
औल
कट जायेगी
इतने बरसों बाद।

जब मिट्टी
से टूटता
है कोई
तो औल
कटती है
बार बार।

कल मै बनूँगी
नागरिक
इस देश की
जिस को
पाया मैने
सायास
पर खोया है
सब कुछ आज
अनायास़।

कल मेरी
औल कटेगी