भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कंकाल / नवीन निकुंज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती रोॅ आकाश तलक
उड़तै खली धुइयाँ हो
कोय नै बचतै देखै लेॅ
श्मशाने रं दुनियाँ हो ।

मारियो केॅ तेॅ मरै लेॅ पड़तै
कहिनें बम केॅ बनावै छै ?
है फुललोॅ फुलवारी केॅ
कहिनें कोय उजाड़ै छै ?

प्रेमोॅ केरोॅ गाछ रोपलियै
फल आबेॅ बौरावै छै
है मुँहझौसा पछिया नें तेॅ
सौंसे गाछ जरावै छै ।

आकाशोॅ मेॅ राॅकेट लड़तै
जहर हवा मेॅ घुलतै हो
पानी लेॅ प्राणी के प्राण
छटपटाय केॅ मरतै हो ।

लोरोॅ सेॅ भिंजलोॅ अँचरा मेॅ
बुतरु सिनी बिलखतै हो
तेसरोॅ विश्वयुद्ध जे ऐतै
दुनियाँ धू-धू जरतै हो ।

इखनी बम के घूर लगाबोॅ
आरो तापोॅ भइया हो
जललोॅ जाय छौं लुत्ती सेॅ घर
चेतबा आबेॅ कहिया हो ?