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कंधों पर सूरज / अनुभूति गुप्ता
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कंधों पर ढोये-ढोये चल रहे हैं
हम आप लिए हुए
सूरज का ताप कहीं।
आँखों में भरकर
सागर के तल से
उठती हुई गर्म भाप कहीं।
हो चुका
जीवन खराब कहीं
चोटिल तन-मन कहीं
कह आये हैं हम आप
सवेरे को
वरदान से शाप कहीं।
ले आयी
अन्तर्मन में,
पीड़ा की बाढ़ कहीं
प्यासी पथराई आँखें
चाहे हैं बरसात कहीं।
ढोये-ढोये
सूरज को कंधों पर
सालों-साल
जिये हम आप कहीं।