भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कटै जूण / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
तपतो तावड़ो
उकळती भोम
गांव -गळियां सूं
उठगी रमझोळ
भाई गयो स्हैर
बाप गयो दूजै गांव
रोटी रो करणो हो जुगाड़
घर मांय
लिछमा अर उण री मां
किण सूं मिलै
किण नै देखै
किण सूं करै बात
बस, अेक उडीक ही
अकाळ जासी
नूंवो परभात आसी
इण उडीक मांय ई
कटै जूण
उण री नीं
केई पीढयां री।