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कभी न आये कोई अड़चन / शोभा कुक्कल
Kavita Kosh से
कभी न आये कोई अड़चन
नाचे गये सब का बचपन
तूने प्यार की भीख न डाली
रह गया खाली मेरा दामन
सूने हैं सावन के झूले
यूँ हो बीत न जाये सावन
जेब नहीं होती है कफ़न में
साथ नहीं जाने का धन
इक दिन माटी हो जायेगा
तेरा उजला उजला ये तन
वो आये हैं सैरे-चमन को
ख़ुशबू फैली गुलशन गुलशन
जब छुट्टी स्कूल में होगी
बच्चों से चहकेगा आंगन
प्यार हर सू बारिश होगी
उसमे भीगेगा ये तन मन
लौट के फिर नहीं आने वाला
नाचता गाता हंसता बचपन
जिसमें हम सब बंधे हैं 'शोभा'
वो है रेशम का इक बंधन।