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करना मुश्किल सैर दूर तक / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
करना मुश्किल सैर दूर तक
ख़तरा लिए बग़ैर दूर तक
अपने-अपने ही होते हैं
साथ न देंगे ग़ैर दूर तक
होनी तो हो गयी मगर अब
जाने मत दे बैर दूर तक
मँहगा पड़ सकता है तुझको
मछली सा मत तैर दूर तक
दिल में हिम्मत है तो ख़ुद ही
ले जायेंगे पैर दूर तक