करप्सन / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
परदे में कुछ रहा नहीं अब सब परदे के बाहर है
करप्सन खुली किताब क्यों ये सरकार कायर है।
कहीं घोटाला कहीं हवाला कहीं धमाका फायर है
खेलाड़ी आतंकी है क्यों आतंकबाद अम्पायर है।
हर दास्तावेज पर अब घूस की मोहर चलती है
कानून चाहे जो भी हो झूठ की बोली लगती है।
कौन देखता किसको यहॉ कौन भूखा और नंगा है
गरीब के लिए बाढ़-सूखा और हर चीज मंहगा है।
समय बदलता पर आदत आज तलक नहीं बदली
सफेदपोश घूमते खुले आम कौन असली और नकली।
लोग उल्लू सीधा करने में दूसरे का पैर काट देते
पैसे के लिए अपना मरा फोटो पोस्टर में साट देते।
मानवता की बात इंसान अब हैवान से क्या करे
एक नासमझ बेईमान शैतान से उम्मीद क्या करे।
गरीब भूख में सोया तो जहॉ का वहीं पड़ा रह जाता
सरकारी गोदामों में अनाज सड़ा का सड़ा रह जाता।
मरने के बाद मीड़िया ही बस्ती में भीड़ जुटाती है
बदले में चार बोरी अनाज जनता को दे जाती है।
जनता और सरकार सब कुछ देखती और जानती है
मुक दर्शक जनता कुदती है सरकार बेवाक फॉदती है।
इसी तरह चलती है दुनिया कहीं विश्वास तो कहीं झॉसा
वाह रे खेल वाह रे तमाशा कहीं आशा तो कहीं निराशा।