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करवा चौथ / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
अपने अस्तित्व
सारे सुखों के लिए
पति पर आश्रित
वे
वैधव्य के भय से आक्रान्त
उसकी दीर्घायु की कामना करतीं
करवाचौथ का निर्जल व्रत करतीं
परम्पराओं
संस्कारों से स्वयं को
आश्वस्त करतीं
बेतरह ऊबी, उकताई
मात्र अनिष्ट की आशंका से
मुक्त होने के लिए
बिना प्रेम, संवेदनशून्य
पति के नाम से
जुड़ी सुविधाओं
सामाजिक, सम्मान
को बनायें, बचाये रखने के लिए
करतीं उपवास, उठातीं कष्ट
इस देश की भोली लगतीं
मगर व्यावहारिक
ढेरों औरतें