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कलाइडियोस्कोप / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
उन्होंने कहा
कलाइडियोस्कोप ही तो है-
ज़िन्दगी
थोड़े से
चूड़ियों के टुकड़े डालो
आँख से लगाओ
और घुमाओ
मैं देर तक सोचता रहा
कि रंग-बिरंगे
काँच के टुकड़ों के लिए
मैं कौन-सी
खनखनाती कलाइयों को
सूना करूँ...।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा