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कलाम तेरे नाम / विजय कुमार विद्रोही

विज्ञानपुरुष वो अनलपूत, भारतविकास, रुख़ मोड़ गया |
वो सकल व्योम का संरक्षक,इस वसुंधरा को छोड़ गया |
वो महामहिम जिसका कर पा,सम्मान धन्यता पाते थे |
कौशल,कुशाग्र मृदुवाणी से , नवप्राण मुग्ध हो जाते थे |

हे दिव्यास्त्रों के पूज्यजनक!, तेरा ऋण हम पर बाक़ी है |
तू हमसे नाता तोड़ गया , दुख रही देश की छाती है |
तेरा ही राष्ट्रसमर्पण है , आगे सीमा लाँघ नहीं सकता |
दिखलाया निष्ठाभाव , धर्म का बंधन बाँध नहीं सकता |

अंतिम पल तक जीवन जीने का,सफल मार्ग दिखलाया है |
भारत की नवपीढ़ी हित अपना , ज्ञानकलश लुटवाया है |
हे भारत माँ के भाग्यपूत ! , हमको विश्वास नहीं होता |
तू बीच हमारे नहीं आज , ऐसा एहसास नहीं होता |

तेरा अमूल्य हर नीतिवाक्य ,जन जीवन सफल बनाऐगा |
इस घोरतिमिर के अंधपटल पर , पुण्यप्रकाश दिखाऐगा ।
भारत की माटी का कण- कण , युग- युग तक तुझको ध्याऐगा ।
जब तक विज्ञान धरा पर है , तेरी गाथाऐं गाऐगा ।