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कविता / ॠतुप्रिया

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मजूर बापू माथै लिखूं
का
मजबूर मा माथै लिखूं
बेबस बेटी माथै लिखूं
का पछै
भूख सूं बिलखतै
टाबर माथै लिखूं

किण माथै
लिखूं कविता
म्हूं समझ नीं सकूं

घर, समाज अर
आखै जग में
जिग्यां-जिग्यां दीखै
दु:ख रा संमदर

कदी सोचूं
थां माथै लिखूं
कदी सोचूं
खुद माथै लिखूं कविता।