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कविता का रोना / सपन सारन
Kavita Kosh से
“जी ! ये कविता न लें”
— क्यों ?
“ये कविता रोती बहुत है”
— कौन सी कविता नहीं रोती ?
— दे दो
और कविता दे दी गई ।
अब कविता उसके पास है
उसके बिस्तर पर सोती है
उसके बच्चों से खेलती है
उसकी माँ का मन बहलाती है
पर उसकी बीवी...
बीवी से चिढ़ती है ।
बीवी से कविता का हुआ तिरस्कार
कविता ने बीवी का किया कु-प्रचार ।
अब कविता का रोना बढ़ गया है
वो उसे लौटाने चला आया है ।
— मुझे नहीं चाहिए
“क्यों ?”
— ये कविता रोती बहुत है
“कौन सी कविता नहीं रोती ?
घर ले जाने पे ?
यहीं प्रेम कर लो — बाज़ार में ।”