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कविता जो न सार्थक हो / केदारनाथ अग्रवाल

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कविता
जो न सार्थक हो-
न सटीक हो-
न बोधक हो-
न बेधक हो
मैं नहीं लिखता
ऐसी कविता
जो न
आदमी के पहिचान की हो
न सत्यालोकित संज्ञान की हो।

रचनाकाल: ०९-०३-१९८०