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कविता रै औळे-दौळै / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
भायलो कैवे
बावळो हुग्यो कांई
कांई सोचै है
बैठ्यो
आव घुम‘र आवां
गुवाड़ में ।
किंया समझावूं
गुवाड़ तो गुवाड़ म्हैं तो घूम लेवूं
आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
एकलो बैठयो ई ।