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कविता लिखने की कोशिश में (कविता) / शशि सहगल
Kavita Kosh से
मैंने बहुत बार
लिखनी चाही कविता
सम्वेदना से अभिभूत होकर
पर
लिखने तक सम्वेदना
चिथड़े-चिथड़े होकर बिखर जाती है
अब मैं
उन बिखरे हुए चिथड़ों को
समेट-सहेज कर
रखती हूँ.
करती हूँ कोशिश पहचानने की
हर चिथड़ा
होड़ लगा आगे आना चाहता है
बदहवास-सी मैं
सभी को पिरोना चाहती हूँ कविता में
इतने में
कान बजबजाने लगते हैं बच्चे की आवाज़ से
'मम्मी भूख लगी है'
सारे के सारे चिथड़े
उसके मुँह में ठूँस
हताश मैं
देखती हूँ
कविता को रोटी में बदलते हुए