कवि-कुत्ते      
देखे-सुने हैं मैंने असंख्य कुत्ते 
जुमले और चुटकले भौंकते,
संता और बंटा के  हिट जोक्स सुनाते,
बेतुके तुकों से तुकबंदी कर
कविताई के नाम पर 
पहेलियां बुझाते
और कभी-कभी अखबारी खबरों की 
कतरने जोड-तोड 
मुशायराना माल-मसाला 
छौंकते-बघारते,
मिसालिया कवित्त्व के 
जुझारुपन से 
काव्यपतियों की मिल्कियत पर
डाका डालते
और उनके वफादार चमचे बन
उनकी जेब और कन्नी
साथ-साथ काटते
हां, यहां बैठ 
जाना मैंने
कि यह देश नहीं हैं 
कुछ सौ शेरों, भेडियों, लकडबग्घों 
और करोडों गीदडों, लोमडियों, बिल्लियों का ही,
वरन है चुनिन्दा बुद्धिजीवियों का भी,
जो मंचों के इर्द-गिर्द
या, मंचों पर 
अपनी उपस्थिति दर्ज कर 
रोटी-हड्डी की तलाश में फिरते हैं मारे-मारे,
अपनी भौंकाहट  का 
विज्ञमापन करते-कराते,
मंच-संयोजकों की खुशामद कर
मुकम्मल करते भावी आमंत्रण मंच पर,
अपने गर्दभ-गानों के आगे-पीछे
श्रोताओं से 
तालियों और कहकहों  
की भीख मांगते
कवि-कुत्ते 
सहर्ष रह लेंगे
जूतों के नीचे,
'गर मिलते रहे उन्हें 
लल्लो-चप्पो आगे-पीछे.