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कवि साहिब / सुरजीत पातर
Kavita Kosh से
मै पहली पंक्ति लिखता हूँ
और डर जाता हूँ राजा के सिपाहियों से
पंक्ति काट देता हूँ
मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूँ
और डर जाता हूँ बाग़ी गुरिल्लो से
पंक्ति काट देता हूँ
मैने अपने प्राणों की खा़तिर
अपनी हज़ारों पंक्तियों को
ऐसे ही क़त्ल किया है
उन पंक्तियों की आत्माएँ
अक्सर मेरे आसपास ही रहती हैं
और मुझे कहती हैं :
कवि साहिब
कवि हैं या कविता के क़ातिल हैं आप ?
सुने मुनसिफ बहुत इंसाफ़ के क़ातिल
बड़े धर्म की पवित्र आत्मा को
क़त्ल करते भी सुने थे
सिर्फ़ यही सुनना बाक़ी था
कि हमारे वक़्त में खौ़फ के मारे
कवि भी बन गए
कविता के हत्यारे।