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कसती हथेली / अर्पण कुमार
Kavita Kosh से
हथेली
जो महसूस हो रही है तुम्हें
कन्धे पर अपने
कभी भी बन सकती है मुट्ठी
और कस सकती है
तुम्हारे गले के चारों ओर
.....
चौंको मत
उँगलियों के दबाव से
बदल जाती है दुनिया
प्रेम के शब्द
गढ़ लेते हैं परिभाषा
हिंसा की ।