भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कस्तूरबा के निधन पर / बलबीर सिंह 'रंग'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कस्तूरबा के निधन पर

आज युगों के बाद हिमालय आँसू भर रोया।

कर्म-वीर के कर की लकुटी
आज अचानक टूटी,
‘मोहन’ की मन-मोहक मुरली
मदु अधरों से छूटी।

आज राष्ट्र ने समझा अपनी
नैतिक परवशता को,
सत्ता के संकीर्ण-हृदय की
दूषित-दुर्बलता को।

जीवन-निर्माता ने अपना जीवन-साथी खोया।
आज युगों के बाद हिमालय आँसू भर रोया।

हिन्द महासागर की लहरें
चीख उठीं गर्जन कर,
मानवता के मूक रुदन से
सिहर उठे भू, अम्बर।

ओ हिमगिरि अपने आँसू का
ऐसा क्षार बना दें,
जो जनमत के असंतोष का
ज्वाला-मुखी जला दें।

तब सूखेगा आँचल तेरा जो है आज भिगोया।
आज युगों के बाद हिमालय आँसू भर रोया।