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कहँमाहि गरजै कहाँ भै बरिसै / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कहँमाहिं गरजै कहाँ भै बरिसै, घरअ पैसी दहलै बेटा केर बाप हे।
कैसे केरा जायतै लड़िला सीरी रामचंदर, झडियो<ref>लगातार वर्षा होना</ref> नहिं छोड़ै लगार<ref>तेज; जोर-जोर से</ref> हे॥1॥
उतरहिं गरजै दखिन भै बरिसै, घरअ पैसी दहलै बेटा केरा बाप हे।
कैसे केरा जायतै लड़िला दुलरुआ पूता, झड़ियो नहिं छोड़ै लगार हे॥2॥
जनु बाबा अहलहो जनु बाबा दहलहो, चित जनु करहो उदास हे।
घरअ पछुअरबा बसै छै दरजिया, छतबा लिहो न सिलाय हे॥3॥
ऐसन छतबा उरेहिहैं रे दरजी, छहकैत<ref>आनंदमग्न होकर; उछलते-कूदते</ref> जैते बरियात हे।
बसहर<ref>वास-घर</ref> छकत<ref>हैरान होंगी; चकरा जायेंगी</ref> माइ बहिनियाँ, मड़बा पर सासु हमार हे॥4॥
कोहबर छकत सारी सरहोजिया, पलँग पर धनिया पियार हे॥5॥

शब्दार्थ
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