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कहता हूँ / अशोक वाजपेयी

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मैं वृक्षों से कहता हूँ
अपनी हरियाली से बनाओ एक पालकी
और उसे ले आओ;
फूलों से कहता हूँ
अपने परागों से बनाओ एक पालकी
और उसे ले आओ;
आकाश से कहता हूँ
अपने अँधेरे-उजालों से बनाओ एक पालकी
और उसे ले आओ;
पक्षियों से कहता हूँ अपने पंखों और कलरवों से
बनाओ एक पालकी
और उसे ले आओ-
मोड़ पर मिलते हैं जितने देवता
उनसे कहता हूँ कि पालकी ढोकर उसे ले आओ
मैं अगवानी में अपने द्वार खड़ा हूँ।